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| == Übersetzung zu V. 213-219 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | des wart er trvric vnde vnvro, || Deshalb war er traurig und unglücklich,
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| | her sprach: ,herre, wie kvmt ditz so, || er sprach: "Herr, wie kommt es,
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| | daz mich ein voglin hat betrogen? || dass mich ein Vögelchen betrogen hat?
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| | daz mvet mich, daz ist vngelogen.' || Das belastet mich, das ist nicht gelogen."
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| | REinhart kvndikeite pflac, || Reinhart war listig,
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| | doch ist hevte niht sin tac, || doch es ist heute nicht der Tag,
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| | daz iz im nach heile mvege ergan. || dass es ihm gut ergehen könnte.
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| == Übersetzung zu V. 385-401 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | Do Reinhart die not uberwant, || Als Reinhart die Gefahr überstanden hatte,
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| | vil schire er den wolf Ysengrin vant. || traf er schon bald den Wolf Ysengrin.
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| | do er in von erst ane sach, || Als er ihn eben erst ansah,
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| | nu vernemet, wie er do sprach: || hört nun zu, was er da sprach:
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| | ,got gebe euch, herre, guten tac. || "Gott beschere euch, Herr, einen guten Tag.
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| | swaz ir gebietet unde ich mac || Alles was auch immer ihr befehlt und womit ich Euch
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| | euch gedinen unde der vrowen min, || und meiner Herrin dienen kann,
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| | des sult ir beide gewis sin. || dessen könnt Ihr euch gewiss sein.
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| | ich bin durch warnen her zu eu kumen || Ich bin hergekommen, um euch zu warnen,
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| | wan ich han wol vernumen, || denn ich habe erfahren,
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| | daz daz euch hazzet manic man. || dass so mancher euch verfolgt.
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| | wolt ir mich zu gesellen han? || Darf ich euch begleiten?
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| | ich bin listic, starc sit ir, || Ich bin gerissen, ihr seid stark,
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| | ir mochtet guten trost han zu mir. || habt Vertrauen zu mir.
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| | vor ewere kraft unde von minen listen || Vor eurer Kraft und meinen Streichen
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| | konde sich niht gevristen, || kann sich niemand retten,
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| | ich konde eine burc wol zebrechen.' || ich könnte eine ganze Stadt hinters Licht führen."
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| == Übersetzung zu ''kündikeit'' V. 217, 307, 364, 1163, 1420f., 1822f., 2037 (Reinhart Fuchs) ==
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| '''V. 217'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | Reinhart kundikeite pflac, || Reinhart war listig,
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| '''V. 307'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | do was im kundikeite zit. || Zeit für eine List!
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| '''V. 364'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | do bedorfte er wol kundikeit: || Wieder bediente er sich einer List:
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| '''V. 1163'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | siner amien warf er durch den munt || Seiner Konkubine tanzte er vor dem Mund
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| | sinen zagel durch kundikeit || mit seinem Schwanz herum
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| '''V. 1420f.'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | ez sold in wol erlozen || Er sollte wohl entehrt werden
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| | Reinhart mit siner kundikeit. || von Reinhart und seiner Verschlagenheit.
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| '''V. 1822f.'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | nieman euch gezelen mack || Niemand kann euch beschreiben
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| | Reinhartes kundikeit -, || wie schlau Reinhart ist -,
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| '''V. 2037.'''
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | Reinhart sich kundikeite vleiz: || Reinharts schlauer Leib:
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| == Übersetzung zu V. 2155-2167 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | alsus lonet ir Reinhart, || Auf diese Weise dankte ihr Reinhart,
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| | daz si sin vorspreche wart. || dass sie sein Fürsprecher war.
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| | Iz ist ouch noch also getan: || Es ist auch noch ebenso:
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| | swer hilfet einem ungetrewen man, || Wer einem unehrlichen Mann hilft,
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| | daz er sine not uberwindet, || dass er sein Leid überwindet,
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| | daz er doch an im vindet || sodass er doch etwas Falsches an ihm findet,
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| | valschs, des han wie gnuc gesehen || das haben wir genug gesehen
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| | unde muz ouch dicke alsam geschen. || und muss auch häufig so geschehen.
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| | alsust hat bewart || Auf diese Weise hat Reinhart
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| | sine vrteilere Reinhart. || das Urteil umgangen.
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| | der arzet was mit valsche da, || Der falsche Arzt
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| | den kunic verriet er sa. || verriet nun den König.
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| | er konde mangen ubelen wanc. || Er kannte manchen üblen Streich.
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| == Übersetzung zu V. 253-274 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | Nu horet, wie Reinhart, || Nun hört wie Reinhart,
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| | der ungetrewe hovart, || der untreue Hofhund,
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| | warb umb sines neven tot. || versuchte seinen Neffen zu töten,
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| | daz tet er doch ane not. || ohne dass es Not täte.
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| | Er sprach: "lose, Dizelin, || Er sprach: "Los, Dizelin,
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| | hilf mir, trut neve min! || hilf mir, mein lieber Neffe!
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| | dir ist leider miner not niht kunt: || Du weißt leider noch nicht:
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| | ich wart heute vru wunt; || ich war heute früh krank;
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| | der kese liet mir ze nahen bi. || der Käse führte mich zu ihm.
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| | er smecket sere, ich vurcht, er si || Er schmeckt sehr, aber ich fürchte,
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| | mir zu der wunden schedelich. || er hat meine Übelkeit verschlimmert.
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| | trut neve, nu bedenke mich! || Lieber Neffe, denke an mich!
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| | dines vater trewe waren gut, || Deines Vaters Treue war gut,
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| | ouch hore ich sagen, daz sippeblut || auch wird gesagt, dass Blut
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| | von wazzere niht vertirbet. || dicker ist als Wasser.
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| | din neve alsust erstirbet. || Dein Neffe stirbt so.
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| | daz macht du erwenden harte wol. || Das musst du gewiss verhindern.
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| | vom stanke ich grozen kummer dol." || Wegen dem Gestank musste ich großen Kummer erdulden."
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| | Der rabe zehant hinnider vlouc, || Der Rabe flog sofort hinunter,
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| | dar in Reinhart betrouc. || wo Reinhart ihn betrog.
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| | er wolde im helfen von der not || Er wollte ihm helfen in der Not
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| | durch trewe, daz was nach sin tot. || die Treue, dass war sein Tod.
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| == Übersetzung zu V. 1784-1790 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | nu vernemet seltzene dinc || Nun hört über das seltene Ereignis
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| | unde vremde mere, || und die fremde Erzählung,
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| | der die glichsere || die der Heuchler,
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| | u kunde geit, wen si sint gewerlich. || erzählt, wenn sie zuverlässig sind.
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| | [] er ist geheizen Heinrich, || Er heißt Heinrich,
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| | der hat die buch zesamene geleit || der dieses Buch zusammen trug
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| | von Isengrines arbeit. || über Isengrins Mühsal.
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| == Übersetzung zu V. 423-427 (Reinhart Fuchs) ==
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| ! Mittelhochdeutsch !! Übersetzung
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| | Reinhart sprach zu der vrowen: || Reinhart sprach zu der Frau:
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| | "gevatere, mochtet ir beschowen || "Freundin, erkennt doch
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| | grozen kummer, den ich trage: || den großen Kummer, den ich habe:
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| | von eweren minnen, daz ist min clage, || Von dem Beischlaf mit euch, das ist mein Problem,
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| | bin ich harte sere wunt." || bin ich sehr wund."
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